एसडीएम के आदेश के खिलाफ कमिश्नरी गयी नगर निगम आखिर क्यों आई बैकफुट पर?

मथुरा (आरएनआई) नगर निगम में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। घोटाले दर घोटाले सामने आते जा रहे हैं। नियमों को ताक पर रखकर निजी लाभ के लिये क्या क्या नहीं किया जा रहा? सब कुछ सामने आता जा रहा है। कुछ बड़े अधिकारियों के निजी हितों के चक्कर में किये गये आदेश अब नगर निगम के लिये जी का जंजाल बनते जा रहे हैं। खुद नगर निगम अपने ही जाल में फंसता नजर आ रहा है।
एसडीएम सदर के आदेशों के विरूद्ध कमिश्नरी जाने का निगम का इरादा केवल यह दर्शाता है कि कॉलोनाइजर से धन ऐंठने के लिये यह सब किया गया। वरना मण्डल से एसडीएम का आदेश रद्द होने के बाद निगम ने क्यों एनओसी जारी कर दी? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की स्वच्छ प्रशासन और भ्रष्टाचारमुक्त प्रदेश के संदेश को निगम झुठला रहा है। मथुरा- दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित राधावैली के निकट मौजा गोविंदपुर स्थित खसरा संख्या 74 एवं 75 की अविभाजित भूमि पर नियमों की अनदेखी करते हुए मथुरा- वृन्दावन नगर निगम द्वारा एनओसी जारी कर दी गयी, जबकि इससे पूर्व उपजिलाधिकारी सदर द्वारा 1 नवंबर 2021 को उक्त भूमि के कुरों (हिस्सों) का बंटवारा किया गया था। इस बंटवारे पर नगर निगम ने खुद आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे नियमविरुद्ध मानते हुये अपर आयुक्त न्यायिक द्वितीय मण्डल, आगरा के समक्ष अपील दायर की। इस अपील पर सुनवाई करते हुए अपर आयुक्त ने 1 अगस्त 2023 को एसडीएम सदर का आदेश निरस्त कर दिया और स्पष्ट निर्देश दिए कि बंटवारे की प्रक्रिया उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली के तहत नियमानुसार दोबारा की जाए। अपर आयुक्त आगरा से कुरा बंटवारा का आदेश निरस्त होने के बाद नगर निगम के अधिकारियों ने आवासीय कॉलोनी के लिये एनओसी जारी क्यों की? यह एक बड़ा सवाल है। सूत्रों का कहना है कि इस पूरे मामले के पीछे बैकडोर से मोटी डील हुयी जिसमें निगम के उच्च पदों पर बैठे अधिकारी स्वयं शामिल रहे। मोटा लेनदेन कर पूरे मामले को साफ सुथरा दिखाने का प्रयास किया गया लेकिन कागजी कार्यवाही और पत्राचार में अब नगर निगम प्रशासन के अधिकारी खुद ही फंसते नजर आ रहे हैं। विवादित भूमि पर बिना उचित बंटवारा प्रक्रिया के एनओसी जारी किया जाना नगर निगम की भूमिका पर सवाल खड़े करता है। स्थानीय निवासियों और सामाजिक कार्यकताओं ने इस मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग की है, ताकि दोषियों को चिन्हित कर कार्रवाई की जा सके। यदि इस तरह की अनियमितताओं को रोका नहीं गया, तो भविष्य में सरकारी भूमि के दुरुपयोग और अवैध कब्जे को बढ़ावा मिल सकता है। नगर निगम में चल रही अनियमिततायें यहां के उच्च अधिकारी की नजर में क्यों नहीं आयीं? नगर आयुक्त आखिर क्या सब कुछ देख रहे हैं? जो कुछ हो रहा है वे जानबूझकर इस सब से क्यों अनिभज्ञ बने हुये हैं? इस सवाल का जबाव लोग जानना चाह रहे हैं।
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