ईरान-इजरायल के बनते-बिगड़ते रिश्ते

इस वक्त ईरान और इजरायल आमने-सामने हैं। दोनों देशों के बीच बढ़ा तनाव दुनिया में एक और युद्ध की आहट दे रहा है।

Apr 18, 2024 - 09:30
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ईरान-इजरायल के बनते-बिगड़ते रिश्ते

नई दिल्ली (आरएनआई) ईरान और इजरायल बीते कई दिनों से आमने-सामने हैं। इस तनाव की शुरुआत 1 अप्रैल को हुई। जब सीरिया स्थित ईरानी दूतावास पर हवाई हमला हुआ। इस हमले में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) के अल-कुद्स बल के एक वरिष्ठ कमांडर सहित कम से कम 11 लोगों की मौत हो गई। ये सभी दमिश्क दूतावास परिसर में एक बैठक में भाग ले रहे थे। हमले का आरोप इजरायल पर लगाया गया, जिसने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली।

इस हमले के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा कि इजरायल को उसके ऑपरेशन के लिए दंडित किया जाना चाहिए और किया भी जाएगा। चेतावनी के बाद ईरान ने शनिवार 13 अप्रैल की रात इजरायल पर 330 मिसाइलें दागीं। इस दौरान ड्रोन हमले भी किए गए। अब इजरायल भी ईरान पर जवाबी कार्रवाई की चेतवानी दे रहा है। इससे संकेत मिल रहा है कि क्रिया-प्रतिक्रिया का यह सिलसिला जल्द थमने वाला नहीं है। आज ईरान और इजरायल भले ही आमने-सामने हैं लेकिन ये कभी दोस्त हुआ करते थे।  

ईरान-इजरायल के रिश्तों की शुरुआत कहां से होती है? दोनों की दोस्ती कैसे हुई? कब ये दोस्ती दुश्मनी में बदल गई? दुश्मनी की वजह क्या रही? बीते वर्षों में दोनों देशों के रिश्ते कैसे बिगड़ते गए? ताजा विवाद की वजह क्या है? आगे क्या हो सकता है? आइये समझते हैं...

1948 में इजरायल बना तो ईरान ने दी मान्यता
साल 1948 दुनिया के नक्शे पर एक नए देश का जन्म होता है। ये देश होता है इजरायल। अरब देशों के बीच में अस्तित्व में आए इस देश को अधिकांश मुस्लिम-बहुल राष्ट्र मान्यता तक नहीं देते हैं। हालांकि, कुछ अपवाद भी होते हैं। इन अपवादों में जो देश शामिल होते हैं उनमें से एक ईरान भी होता है। उस वक्त ईरान में पहलवी राजवंश का शासन था। इस राजवंश ने आधी सदी से अधिक समय तक शासन किया गया था। पहलवी राजवंश अमेरिका का समर्थक था जबकि इजरायल अमेरिका का समर्थन करता था। 

आज जिस फलस्तीन के समर्थन में ईरान खड़ा है उसने उस वक्त ईरान के इस कदम को 'नकबा' यानी तबाही बताया था। फलस्तीन ने भी इसे तबाही की एक मौन अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति के रूप में देखा। कहते हैं कि इजरायल बनने से 7,00,000 से अधिक फलस्तीनी अपनी जमीन से बेदखल हो गए थे। 
 
इजरायल-ईरान ने मजबूत किए रिश्ते
शीत युद्ध के उस दौर में ईरानी शासन को अमेरिका का समर्थन मिला हुआ था। वहीं, इजरायल को भी अमेरिका और यूरोप का समर्थन मिला हुआ था। ईरान में भी बड़ी संख्या में यहूदी रहते थे। यहां तक की आज भी पश्चिमी एशिया में इजरायल के बाद सबसे ज्यादा यहूदी ईरान में ही रहते हैं। 1956 में ईरान में हुई जनगणना के अनुसार, उस समय ईरान में लगभग 65,000 यहूदी रहते थे।
 
देश बनने के बाद इजरायल ने भी अन्य देशों से संबंध स्थापित करने के प्रयास शुरू किए। इजरायल ने ईरान की राजधानी तेहरान में एक दूतावास की स्थापना की। दोनों ने एक दूसरे के यहां अपने राजदूत नियुक्त किए। व्यापारिक संबंध भी बढ़े और जल्द ही ईरान इजरायल के लिए तेल आपूर्ति का प्रमुख स्त्रोत बन गया। दोनों ने 1968 में एक पाइपलाइन शुरु की जिसका उद्देश्य ईरान के तेल को इजरायल और फिर यूरोप भेजना था।

इस्लामी क्रांति से संबंधों में खटास की शुरुआत
साल 1979, ईरान में इस्लामी क्रांति होती है। ईरान की सत्ता पर काबिज शाह मोहम्मद रजा पहलवी को देश छोड़ कर भागना पड़ता है। वहीं, वर्षों के देश से बेदखल चल रहे अयातुल्ला रुहोल्ला खोमैनी देश लौटते हैं और ईरान की सत्ता पर उनका कब्जा हो जाता है। ईरान की इस इस्लामिक क्रांति के बाद दोनों देशों के बीच के संबंधों में खटास की शुरुआत होती है। 
 
इस क्रांति के बाद कभी फारस कहा जाने वाला पारसियों का देश रहा ईरान एक इस्लामी गणतंत्र के रूप में बदल जाता है। ईरान के नए सर्वोच्च नेता खोमैनी ने उस वक्त विश्व शक्तियों को 'अहंकारी' करार दिया और उनके खिलाफत की नीति अपनाई। उन्होंने विश्व शक्तियों के क्षेत्रीय सहयोगियों के खिलाफ खड़े होने का एलान जिसे वह मानते थे कि ये अपने हितों को साधने के लिए फलस्तीनियों सहित दूसरों पर अत्याचार करेंगे।

ईरान पर सद्दाम की सेना ने हमला बोला, इराक को मिला अमेरिका का साथ
हालांकि, रिश्ते तत्काल पूरी तरह से नहीं बिगड़ते हैं। इस्लामी क्रांति के बाद एक शिया उलेमा सत्ता पर काबिज हुआ। पड़ोसी देश इराक की सत्ता पर सुन्नी तानाशाह सद्दाम हुसैन का शासन था। अस्थिरता के दौर से गुजर रहे ईरान पर सितंबर 1980 में सद्दाम की सेना ने अचानक हमला बोल दिया। इराक को अमेरिका का साथ मिला। वहीं, इजरायल ने ईरान का साथ दिया। सद्दाम को अमेरिका की ओर से मदद मिल रही थी। सद्दाम को उम्मीद थी कि वो कुछ ही दिनों में ईरान पर जीत दर्ज कर लेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। ईरान के सुप्रीम लीडर खोमैनी सद्दाम को इस्लामी क्रांति में बाधा के रूप में देखते थे। उनकी सेना डटी रही और इराकी नेता को उखाड़ फेंकने के प्रयास में युद्ध जारी रखा। कई वर्षों तक चला यह युद्ध किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका। न सद्दाम खोमैनी को सत्ता से बेदखल कर सके न ही खोमैनी सद्दाम को सत्ता से हटा सके। 

इस युद्ध का एक और दिलचस्प पहलू भी था। कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि जो अमेरिका सद्दाम की मदद कर रहा था वही, गुप्त रूप से खोमैनी की सेना को भी हथियारों की सप्लाई कर रहा था। आठ साल चले युद्ध के खत्म होते-होते पश्चिम एशिया के समीकरण बदल चुके थे। इस युद्ध के चंद साल बाद ही सद्दाम अमेरिका के निशाने पर आ गए। जब 1990 में उन्होंने कुवैत पर कब्जा कर लिया था।

ईरानी सत्ता ने अमेरिका को 'महान शैतान' की संज्ञा दी
वहीं, दूसरी ओर ईरान और इजरायल के रिश्ते भी कड़वे होने लगे। दोनों के बीच छद्म युद्ध की शुरुआत हो गई। ईरानी सत्ता ने अमेरिका को 'महान शैतान' और इजरायल को 'छोटा शैतान' की संज्ञा दे दी। ईरान ने इजरायल के साथ सभी संबंध तोड़ दिए। नागरिक अब यात्रा नहीं कर सकते थे और उड़ान सेवा रद्द कर दी गई और तेहरान में इजरायली दूतावास को फलस्तीनी दूतावास में बदल दिया गया। ईरान-इजरायल के बीच कड़वाहट की शुरुआत 1982 में होती है। बाद में दोनों देशों के संबंध और खराब होते गए क्योंकि इजरायल ने आरोप लगाया कि ईरान ने सीरिया, इराक, लेबनान और यमन में राजनीतिक और सशस्त्र समूह खड़े किए और उन्हें आर्थिक मदद दी।

खोमैनी ने रमजान के हर आखिरी शुक्रवार को 'कुद्स दिवस' के रूप में घोषित किया। तब से पूरे ईरान में फलस्तीनियों के समर्थन में उस दिन बड़ी रैलियां आयोजित की जाती रही हैं। दरअसल, जेरूसलम को अरबी भाषा में अल-कुद्स कहा जाता है।

ईरान पर प्रॉक्सी नेटवर्क के समर्थन का आरोप 
ईरान पर आरोप लगता रहा है कि यह लेबनान, सीरिया, इराक और यमन सहित पूरे क्षेत्र के कई देशों में प्रॉक्सी नेटवर्क का समर्थन करता है। इस समूह को 'प्रतिरोध की धुरी' के रूप में जाना जाता है जो फलस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने के साथ-साथ इजरायल को एक प्रमुख दुश्मन मानते हैं। ये सशस्त्र समूह इजरायल के साथ-साथ अमेरिकी सेना को भी निशाना बनाते हैं। इनमें से मुख्य है लेबनान में मौजूद हिजबुल्ला, जिसका गठन 1982 में दक्षिणी लेबनान में इजरायली कब्जे से लड़ने के लिए किया गया था। बीते कई वर्षों से ये छद्म युद्ध जारी है। ताजा मामले की बात करें तो इसकी शुरुआत 7 अक्तूबर 2023 में हमास और इजरायल के बीच युद्ध से होती है। इस युद्ध में भी हिजबुल्ला शामिल है। वह लगातार उत्तरी इजरायल में रॉकेट से हमले कर रहा है। ईरान पर हूती विद्रोहियों की भी मदद करने का आरोप लगता है। यह संगठन भी लगातार इजरायल पर हमले कर रहा है।  

ईरानी दूतावास पर हमला बना नए विवाद का कारण
चलते चलते ताजा विवाद भी जान लीजिए। इजरायल और ईरान के बीच ताजा विवाद 1 अप्रैल से शुरू हुआ। इस दिन सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला हुआ। सीरिया की राजधानी दमिश्क में स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हुए इस हमले में कम से कम 11 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) के अल-कुद्स बल के एक वरिष्ठ कमांडर भी शामिल थे। हमले के वक्त ये सभी दमिश्क दूतावास परिसर में एक बैठक में भाग ले रहे थे। हमले का आरोप इजरायल पर लगाया गया, जिसने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली। ईरान ने इस हमले का बदला लेने की बात कही। हमले के बाद 13 अप्रैल की देर रात ईरान ने इजरायल पर मिसाइल और ड्रोन से हमले किए। दावा किया गया कि इस दौरान इजरायल पर 300 से ज्यादा मिसाइलें दागी गईं। हालांकि, अमेरिका ने दावा किया करीब-करीब सभी हमलों को विफल कर दिया गया। वहीं, दूसरी ओर इजरायल ने भी इस हमले का जवाब देने की धमकी दी है। ऐसे मे यह तनाव कब तक चलेगा इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।

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