बिखर गया परिवार, बिक गए जेवर, खेत रख दिए गिरवी, लुट सा गया बेचारा फिर भी नहीं बची संविदा वाली नौकरी

रोजगार की तलाश मे नौकरी की खातिर तबाह हुआ परिवार पत्नी भी छोड़कर चली गई , स्थिति बदतर इतनी कि दो वक्त की रोटी तक के पड़ने लगे लाले।

May 6, 2025 - 13:40
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बिखर गया परिवार, बिक गए जेवर, खेत रख दिए गिरवी, लुट सा गया बेचारा फिर भी नहीं बची संविदा वाली नौकरी

कायमगंज / फर्रुखाबाद (आरएनआई) तबाही के मंजर की यह दर्द भरी दास्तां उन संविदा कर्मियों की है जो रोजगार के लिए अपना बहुत कुछ दांव पर लगा देने के बाद भी बेरोजगारी की विभीषिका का शिकार बने हुए है । ठहर सी गई है जिनकी जिन्दगी वे हैं -बिजली विभाग में ठेके पर काम कर रहे संविदा कर्मी जिनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं। एक झटके में 56 कर्मचारियों को निकाल दिए जाने से कई परिवारों के सामने भूखमरी की नौबत आ गई है। अचरा क्षेत्र के फतनपुर गांव निवासी कृष्णकांत चतुर्वेदी उन्हीं में से एक हैं, जिनके घर अब चूल्हा जलना भी मुश्किल हो गया है। कृष्णकांत चतुर्वेदी ने ढाई बीघा खेत गिरवी रखकर 25 हजार रुपये में बिजली विभाग में ठेके पर नौकरी हासिल की थी। इससे पहले भी उन्होंने नौकरी के लिए पत्नी के जेवर तक बेच दिए थे। डेढ़ साल तक फर्रुखाबाद में और फिर कायमगंज टाउन में लाइनमैन के काम पर कार्यरत रहे। अप्रैल तक ईमानदारी से काम किया लेकिन अप्रैल में न वेतन मिला, न ही पीएफ का हिसाब। ऊपर से कंपनी ने चार मई को 56 कर्मियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब हालात यह हो गए हैं कि कृष्णकांत के घर में चार दिन से चूल्हा नहीं जला। राशन के गेहूं खत्म हो गए। दो बेटियां जो परिषदीय विद्यालय में पढ़ती हैं, स्कूल तो जा रही हैं, लेकिन पेट खाली है। पत्नी मायके चली गई। वह कहती हैं अब घर कैसे चलाएं? और कब तक दूसरों के भरोसे रहें? कब तक बोझ बने और रो पड़ी। उधर, ठेकेदार ने कृष्णकांत से फिर 10 हजार रुपये मांगे हैं, ताकि शायद नौकरी दोबारा मिल सके। लेकिन अब कुछ बचा ही नहीं है। मोहल्ले वालों का कहना है कि कृष्णकांत गहरे सदमे में है और रात-रात भर जागते हैं। शनिवार को बिजली उपकेंद्र पर निकाले गए कर्मचारियों ने धरना भी दिया, लेकिन अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। एक्सईएन के समझाने पर धरना तो खत्म हुआ, लेकिन बेरोजगार कर्मियों की आंखों से उम्मीद भी खत्म होती जा रही है।  प्रशासन से अपील की है कि कृष्णकांत जैसे अन्य सभी कर्मियों को न्याय मिले और उन्हें फिर से रोजगार उपलब्ध कराते हुए नौकरी पर रखा जाए।
कारण कि जब व्यक्ति के सामने दो वक्त की रोटी तक के लाले पड़ जाएँ तो जीवन जीने की हिम्मत भी जबाब दे जाती है ।


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