इंदौर में प्रॉपर्टी के भाव बेंगलुरु, पुणे से भी ज्यादा, क्वॉलिटी लिविंग जीरो

विज्ञापनों के सब्ज़बाग मौके पर मिलते ही नही, मिलते भी तो बरसो बाद 

Feb 26, 2024 - 21:25
Feb 26, 2024 - 21:28
 0  1.1k

इंदौर (आरएनआई) बायपास या सुपर कॉरिडोर या नेनोद रोड की आधी अधूरी कालोनियों व टाउनशिप में रहने वालों से जाकर एक बार तो पूछिये उनके अनुभव। फिर करवाइए आप शहर से बाहर रहवास की बुकिंग। पूछिये तो सही कि जब घर मे गमी हो जाती है तो श्मशान मिल पाता हैं? अकस्मात जरूरत पर दवाई की दुकान मिल जाती है? खिड़की के बाहर चोर डकैत दिख भी जाये तो पुलिस मदद तत्काल आ सकती है? किसी को अगल बगल से पुकारकर सहायता के लिए बुला सकते हैं? ये अनुभव ले ले फिर जाए स्टेटस मेंटेन करने ऐसी जगह रहने। अरे जो आपको ये " माल" बेच रहें हैं, सपने दिखा रहें हैं...वे सबके सब तो शहर में रहते है। पुराने मोहल्ले कालोनियों में। आपको भेज रहे है 20 किमी दूर। है न हैरत की बात? कितने बिल्डर्स और दलाल के घर शहर से दूर इन टाउनशिप में हैं? है कोई जवाब?

समाचार की इस सच्चाई के बाद शायद अब आँखे खुल जाए।परिवार से बढ़कर कुछ नही।इतना पैसा खर्च करते है और सुरक्षा 10 पैसे की नही। शहर से बाहर बसी 99% टाउनशिप व कालोनी की हालत ऐसी ही है। मेरे एक दोस्त के पिताजी का निधन हुआ।शवयात्रा में आने वाले बाहर के रिश्तेदार खूब परेशान हुए। हम नज़दीक गाँव गए, वहाँ अंतिम क्रिया की लकड़ियां नही। वहाँ 2 घण्टे इंतजार भी किया। परेशान हुए। सब जगह फोन  लगाए। कुछ नही हुआ आश्वासन मिल गया। फिर वहां से तिलकनगर आये। तब जाकर शव आ अंतिम संस्कार हों पाया। इस बीच कई रिश्तेदारों की तबियत ही खराब हो गई। बारिश भी हो रही थी। अस्पताल स्कूल, सब्जी मंडी, मेडिकल दुकान, जीवन उपयोगी  सुविधा और सबसे बड़ी बात सुरक्षा कुछ नही।

सबसे खास बात ये है कि जो बिल्डर, ब्रोकर्स कालोनी बेचते है, वो मज़े से शहर के बीच शान से रहते है। एक बार बेचने के बाद  मिलते भी नही। 

ये पीड़ा है एक भुक्तभोगी की जिसने टाउनशिप की इस पीड़ा को भोगा हैं। ख़ुलासा फर्स्ट के खुलासे के बाद कई लोगो ने अपनी पीड़ा बताई कि किस तरह वे विज्ञापनों के छलावे में आकर यहां आकर बस गए और अब आये दिन परेशान हो रहें हैं। कोई सुनने वाला भी नही। जब प्लॉट मकान बुक करना था तो घर तक कार भेज दी थी। मोके पर चाय नाश्ता भी था लेकिन अब जब हम परेशानी बताते है तो समाधान तो दूर, फोन तक नही उठाते। सुपर कॉरिडोर क्षेत्र के रहने वाली एक महिला का कहना था कि क्लब हाउस के नाम पर अब तक बस हमारे हाथ मे ब्रोशर ही है जिस पर सुंदर क्लब हाउस का फोटो हैं।

जो वर्तमान में शहर की दूरदराज की बसाहट वाले इलाकों में रह रहे हैं, उनका दर्द सामने आता ही नही। बायपास की एक टाउनशिप में रहने वाले रिटायर्ड अधिकारी का तो दो टूक कहना है कि बिल्डर्स अखबारों को गले गले तक विज्ञापन दे रहें हैं तो अखबार  कहा से हमारी परेशानी छापेंगे। अब तो बिल्डर लॉबी अखबारों के ही सँग इस बिजनस में शामिल हो गई हैं। मेले लगाए जा रहें है अखबारों के जरिये। क्या अखबार बिल्डर्स की ग्यारंटी लेंगे? या वे बिल्डर के साथ पार्टनरशिप में ये सब कर रहें हैं? आखिर इस शहर को ये तो पता चले कि जमीन का धंधा क्या अब इस शहर में न्यूज पेपर के जरिये ही होगा? 

इंदौर में प्रॉपर्टी के भाव आसमान छू रहे हैं। ऐसा कोई इलाका ही नही बचा जहां आम आदमी प्लॉट मकान फ्लेट ले सके। शहर से 10-20 किमी दूर तक के भाव 3 हजार से 5 हजार तक ' खोले " जा रहें हैं? यानी एक हजार फीट का प्लॉट 30 से 50 लाख तक। नवधनाढ्य और शहर से बाहर आने वाले इस खेल के शिकार बन रहें हैं। असली इन्दौरी आज भी इतने पैसे में बीच शहर में ही अपना आशियाना तलाशता हैं। इंदौर के बिल्डर्स भाव तो आसमान पर चढ़ाए हुए लेकिन सुविधा के नाम पर जीरो हैं। पश्चिमी इंदौर के एक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट का तो साफ कहना है कि जिस तरह की फैसिलिटी व सुरक्षा बंदोबस्त पुणे बेंगलुरु की टाउनशिप व कालोनियों में होते गए उसकी तुलना में इंदौर में 10 पैसे भी काम नही हैं। बस लोकलुभावन ब्रोशर, पोस्टर, बेनर व विज्ञापनों के दम पर लोगो को लूटा जा रहा हैं। 

मजे की बात तो ये है कि जितने भी बिल्डर्स व दलाल हैं, वे सब आपको बायपास, सुपर कॉरिडोर, नेनोद आदि दूरदराज इलाको में रहने के सपने बहुत दिखाते है लेकिन स्वयम इन जगहों पर नही रहते। प्लॉट मकान फ्लेट बुक कराने वाले एक बार इस बात की भी तो पड़ताल करें कि जो टाउनशिप बुक कर रहा है, वो कहा रहता हैं? पता चलेगा कि तमाम दलाल व बिल्डर्स बीच शहर में ही अपना आशियाना बनाये हुए हैं। कई तो पुराने मोहल्लों और अपने पुराने मकानों में ही डटे हुए हैं। कारण बस एक ही-सुरक्षा व सुविधा। जब इन दो चीजो के लिए बिल्डर्स दलाल अपना ठिकाना नही बदल रहे तो आप क्यो बोरिया बिस्तर समेटकर, शहर से निकलकर, शहर से बाहर जाकर बस रहे हो। जहां न सुरक्षा है न जीवन उपयोगी कोई सुविधा। ऐसी जगह रहवास बनाकर सिर्फ आपके अहम को संतुष्ट करने के आपके पास क्या है? तेंदुआ है, चोर है, डकैत है, लुटेरे है ऒर है पूरा दिन इस बात की चिंता कि सुनसान जगह पर घर पर सब अकेले है। 

Follow the RNI News channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaBPp7rK5cD6XB2Xp81Z

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

211
211