शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता: प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर ध्यान दें

मथुरा (आरएनआई) देश चाहे जितनी प्रगति कर ले, जब तक हम शिक्षा के क्षेत्र में ठोस और कठोर कदम नहीं उठाएंगे, तब तक हमें किसी भी प्रकार का प्रगति का दावा नहीं करना चाहिए। शिक्षा की असली ताकत केवल बुनियादी ढांचे और तकनीकी संसाधनों में नहीं, बल्कि एक समान और सस्ती शिक्षा उपलब्ध कराने में है। आज की स्थिति यह है कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वसूली ने गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों को आर्थिक बोझ के नीचे दबा दिया है।
प्राइवेट स्कूलों की फीस वसूली:
वर्तमान में प्राइवेट स्कूलों द्वारा छात्रों से एक के बाद एक विभिन्न प्रकार की फीस ली जा रही है। एक्टिविटी शुल्क, पुस्तक और कॉपी शुल्क, बिल्डिंग निर्माण शुल्क, यूनिफॉर्म शुल्क, और क्या-क्या शुल्क! इसके अलावा, स्कूलों के खुद के बुक सेंटर और यूनिफॉर्म सेंटर भी चल रहे हैं, जहाँ छात्रों और अभिभावकों को मनमाने दामों पर सामान खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। यह सब देखकर लगता है कि शिक्षा अब एक व्यापार बन चुकी है, जहां बच्चों के भविष्य के नाम पर पैसे कमाए जा रहे हैं।
मध्यम वर्ग पर पड़ रहा बोझ:
जो परिवार किसी तरह अपनी आवश्यकताएँ पूरी कर रहे थे, वे अब शिक्षा के नाम पर बढ़ते शुल्कों का बोझ नहीं उठा पा रहे। इस बोझ के कारण बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। मध्यम वर्ग, जो पहले से ही आर्थिक रूप से दबा हुआ है, अब इसे एक और चुनौती के रूप में देख रहा है। यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है और इसका कोई ठोस हल नहीं निकल रहा।
क्या सरकार और शिक्षा मंत्री इसे गंभीरता से लेंगे?
1. सख्त नीति की आवश्यकता: सरकार को प्राइवेट स्कूलों के फीस संरचना को नियंत्रित करने के लिए सख्त और स्पष्ट दिशा-निर्देश बनानी चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूल मनमानी फीस न लें और विद्यार्थियों से केवल वैध और आवश्यक शुल्क ही लिया जाए।
2. शुल्क वसूली में पारदर्शिता: स्कूलों को अपनी फीस वसूली की संरचना और सभी अतिरिक्त शुल्कों के बारे में पूरी पारदर्शिता रखनी चाहिए, ताकि अभिभावक जान सकें कि वे किस कारण से किस शुल्क का भुगतान कर रहे हैं।
3. मध्यम वर्ग के लिए सहायक योजनाएं: सरकार को विशेष रूप से मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए सहायक योजनाएं बनानी चाहिए, जिससे वे बच्चों की शिक्षा का खर्च वहन कर सकें। शिक्षा पर खर्च को कम करने के लिए सरकार को स्कूलों में सब्सिडी देने पर भी विचार करना चाहिए।
4. समाज में जागरूकता बढ़ाना: समाज को यह समझाने की जरूरत है कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ व्यवसाय नहीं है। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना हमारी जिम्मेदारी है, न कि उन्हें पैसे कमाने का एक जरिया बनाना।
शिक्षा किसी भी देश का सबसे अहम हिस्सा है, लेकिन जब वह व्यापार का रूप ले लेती है, तो यह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है। हम उस देश के नागरिक हैं जो 'समाजवाद' और 'समानता' के सिद्धांतों पर विश्वास करता है, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह की लूट और अनियमितताओं के खिलाफ कदम उठाने की जरूरत है। शिक्षा मंत्री और सरकार से निवेदन है कि इस दिशा में सख्त कदम उठाए जाएं, ताकि हर बच्चे को शिक्षा का समान अवसर मिल सके, और उन्हें मानसिक और आर्थिक बोझ से मुक्त किया जा सके।
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