सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

नागरिकता संशोधन कानून से मुस्लिम वर्ग के शरणार्थियों को बाहर रखा गया है। मुस्लिमों को कानून से बाहर रखने के फैसले का ही विरोध हो रहा है। कानून का विरोध करने वाले लोगों का आरोप है कि इस कानून का आधार धर्म है, जो कि देश के संविधान के खिलाफ है। 

Mar 19, 2024 - 15:05
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सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 8 अप्रैल यानी कि करीब तीन हफ्ते का समय दिया है और सुनवाई की अगली तारीख 9 अप्रैल तय की है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से नागरिकता कानून को लागू करने से रोक की मांग की, लेकिन कोर्ट ने ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया। सीएए के खिलाफ 200 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई की। 

केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोर्ट में पेश हुए। तुषार मेहता ने पीठ से अपील की कि 20 आवेदनों पर जवाब देने के लिए चार हफ्तों का समय चाहिए। मेहता ने ये भी कहा कि यह किसी भी व्यक्ति की नागरिकता लेने के लिए नहीं है। नागरिकता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 237 याचिकाएं दायर हुई हैं। शीर्ष याचिकाओं में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की याचिका शामिल है। आईयूएमएल ने याचिका में कहा है कि इस कानून में धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। आईयूएमएल के अलावा एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी और केरल सरकार ने भी याचिकाएं दायर की हैं। 

गृह मंत्रालय ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन कानून के नियमों को लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धर्म के आधार पर उत्पीड़न झेलकर भारत आने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। इस कानून के तहत सिर्फ हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के मानने वाले लोगों को ही नागरिकता संशोधन कानून के तहत भारत की नागरिकता दी जा सकेगी। मुस्लिम वर्ग के शरणार्थियों को इससे बाहर रखा गया है। मुस्लिमों को कानून से बाहर रखने के फैसले का ही विरोध हो रहा है। कानून का विरोध करने वाले लोगों का आरोप है कि इस कानून का आधार धर्म है, जो कि देश के संविधान के खिलाफ है। 

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