सुप्रीम कोर्ट के कठोर निर्देशों के बाद वृंदावन वृक्ष कटान याचिका NGT ने की निस्तारित
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आज वृंदावन के डालमिया बाग से 454 हरे वृक्षों को काटने की याचिका यह कहते हुए निस्तारित कर दी कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित कठोर आदेश याचिकाकर्ता की समस्त प्रार्थनाओं को समाहित करता है और चूंकि उसके बाद याचिकाकर्ता की कोई अपील शेष नहीं रह जाती इसलिए इसे निस्तारित किया जाता है।

मथुरा (आरएनआई) आज दिनांक 5 मई 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रधान पीठ में प्रचलित वाद संख्या OA No. 1191/2025 की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि उपरोक्त प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले ही अत्यंत कठोर एवं व्यापक आदेश पारित किए जा चुके हैं और जिनमें याचिकाकर्ता श्री नरेंद्र कुमार गोस्वामी एडवोकेट द्वारा प्रस्तुत समस्त प्रार्थनाएँ पहले ही स्वीकार की जा चुकी हैं इसलिए इस वाद को निस्तारित किया जाता है।
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में निम्नलिखित कठोर निर्देश पारित किए गए हैं-
1. 454 पेड़ों की प्रतिपूर्ति उसी भूमि पर वृक्षारोपण करके की जाएगी।
2. 9080 वृक्षों का रोपण आसपास के उपयुक्त स्थलों पर किया जाएगा, जिनमें 4540 पौधे मूल वृक्षों के स्थान पर प्रतिपूरक वृक्षारोपण के रूप में तथा 4540 पौधे दंड स्वरूप लगाए जाएंगे।
3. प्रत्येक वृक्ष हेतु ₹1,00,000/- के हिसाब से ₹4,54,00,000/- (चार करोड़ चौवन लाख रुपये मात्र) का न्यूनतम दंड भूमि स्वामी पर अधिरोपित किया गया है, जिसे वन विभाग के माध्यम से वृक्षारोपण में व्यय किया जाएगा।
4. उ. प्र. वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 तथा भारतीय वन अधिनियम 1927 के प्रावधानों के तहत अवैध वृक्ष कटान हेतु दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
5. संरक्षित वन क्षेत्र में बिना पूर्व अनुमति मार्ग निर्माण हेतु वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अंतर्गत अभियोजन चलेगा।
6. वन विभाग द्वारा समस्त अवैध लकड़ी की जब्ती एवं निस्तारण का कार्य किया जाएगा।
7. TTZ प्राधिकरण द्वारा न्यायालय के समस्त आदेशों के अनुपालन की त्रैमासिक रिपोर्ट पेश की जाएगी।
8. निर्माण प्रतिबंध रहेगा
9. अवमानना के लिए पृथक दंड पर भी विचार किया जाएगा।
एनजीटी ने यह कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित उपरोक्त आदेशों के आलोक में याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत सभी बिंदु कवर हो चुके हैं और अब एनजीटी के समक्ष इस विषय में कोई स्वतंत्र विवाद शेष नहीं रह जाता।
जब याचिकाकर्ता द्वारा यह कहा गया कि एनजीटी द्वारा गठित संयुक्त समिति की रिपोर्ट में यह संस्तुति दी गई थी कि विवादित भूमि को ग्रीन बेल्ट/ग्रीन लैंड घोषित किया जाए, परंतु यह संस्तुति सुप्रीम कोर्ट में जानबूझकर प्रस्तुत नहीं की गई, तो इस पर एनजीटी ने यह टिप्पणी की- “हमने उक्त प्रकरण में जांच समिति गठित की थी, परंतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इतना कठोर एवं समग्र आदेश पारित किया गया है कि हम उनके आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। यदि याचिकाकर्ता उपयुक्त समझे तो वो इस संस्तुति को सीधे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं।”
अंततः एनजीटी ने अपने आदेश में स्वयं सुप्रीम कोर्ट के आदेश (रिपोर्ट संख्या 35/2024 के अनुच्छेद 14) को शब्दशः उद्धृत करते हुए कहा कि—
हम रिपोर्ट संख्या 35/2024 के अनुच्छेद 14 में दी गई सिफारिशों को स्वीकार करते हैं, जो इस प्रकार हैं:
(1) प्रत्येक अवैध रूप से काटे गए वृक्ष पर ₹1,00,000/- का दंड, कुल ₹4,54,00,000/- दंडाधीन।
(2) उप्र वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 के तहत अतिरिक्त दंड वसूली।
(3) संरक्षित वन क्षेत्र में 32 वृक्षों के अवैध कटान हेतु अभियोजन।
(4) वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत अवैध मार्ग निर्माण पर कार्रवाई।
(5) पुनर्स्थापन हेतु 454 वृक्ष — 422 निजी भूमि पर, 32 संरक्षित वन में।
(6) 9080 पौधों का रोपण, भूमि स्वामी के व्यय पर।
(7) अवैध लकड़ी की जब्ती।
(8) संबंधित स्थल पर निर्माण पर रोक।
(9) TTZ प्राधिकरण द्वारा अनुपालन की निगरानी एवं रिपोर्टिंग।
(10) न्यायालय की अनुमति के बिना वृक्ष काटने के लिए अवमानना हेतु पृथक दंड का अधिकार।”
NGT ने स्पष्ट किया कि इस आदेश के आलोक में प्रकरण अब निर्णीत हो चुका है।
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