हवा में 'जहर' से कैंसर की चपेट में आ रहे बच्चे

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पीएम 2.5 स्तर के संपर्क और बच्चों में तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के जोखिम के बीच संबंध बताया गया है। विश्लेषण में पाया गया है कि बच्चों को प्रदूषित हवा से ज्यादा खतरा होता है, क्योंकि वे वयस्कों की तुलना में अधिक तेजी से सांस लेते हैं और अधिक प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं।

Nov 7, 2023 - 05:45
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हवा में 'जहर' से कैंसर की चपेट में आ रहे बच्चे

नई दिल्ली, (आरएनआई) वायु प्रदूषण बच्चों के लिए लगातार घातक और जानलेवा बनता जा रहा है। 2012 से अब तक राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली और महानगरों के आसपास कई इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। नवजात से लेकर 14 वर्ष की आयु के अनुपात में सभी आयु समूहों की तुलना में बचपन में कैंसर का खतरा 0.7 प्रतिशत से 3.7 प्रतिशत अधिक है। अध्ययन में यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चों में कैंसर होता है।

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पीएम 2.5 स्तर के संपर्क और बच्चों में तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के जोखिम के बीच संबंध बताया गया है। विश्लेषण में पाया गया है कि बच्चों को प्रदूषित हवा से ज्यादा खतरा होता है, क्योंकि वे वयस्कों की तुलना में अधिक तेजी से सांस लेते हैं और अधिक प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं।

नेशनल सेंटर फॉर डिसीज इन्फोर्मेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अध्ययन के मुताबिक, भारत के महानगरों में उच्च प्रदूषण के कारण बच्चों के लिए कैंसर जानलेवा बनता जा रहा है। उच्चतम आय वाले देशों की तुलना में भारत में कैंसर से जूझ रहे बच्चों का बच पाना बहुत मुश्किल होता है।

दिल्ली में प्रति दस लाख पर 203.1 बच्चे सभी प्रकार के कैंसर से प्रभावित हैं, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में यह आंकड़ा केवल 12.2 प्रति दस लाख है। उत्तर भारत के अन्य शहरों में जहां प्रदूषण की दर कम है वहां  2012 और 2022 यह आंकड़ा मात्र 15. 6 प्रति 10 लाख है। जिन राज्यों की हवा खराब है वहां यह आंकड़ा आश्चर्यजनक तरीके से बहुत ऊपर है। पटियाला की कैंसर रजिस्ट्री में प्रति दस लाख बच्चों पर 121.2 मामले दर्ज किए गए। नवजात से लेकर 14 वर्ष की आयु के बीच प्रति दस लाख पर 84.2 लड़के कैंसर से प्रभावित होते हैं, जबकि मेघालय में यह आंकड़ा प्रति दस लाख पर केवल 7.3 है। लिम्फोमा के मामले में दिल्ली में लड़कों में यह संख्या 30.7 प्रति 10 लाख है, जो मेघालय में काफी कम 2.3 है।

खराब और जहरीली हवा के कारण जन्म के समय कम वजन और बच्चों की मृत्यु तक होती है। विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के बच्चों पर वायु प्रदूषण का प्रभाव दिल्ली या उत्तर भारत तक ही नहीं, बल्कि अन्य महानगरों के आसपास के इलाकों तक फैला हुआ है। वायु प्रदूषण भ्रूण से लेकर बच्चे के पूरे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है।

जर्मनी और फ्रांस के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में दिखाया है कि वायु प्रदूषण का बच्चों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह बौनेपन से भी जुड़ा हुआ है।

नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में पीएम 2.5 एक्सपोजर में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम घन मीटर की वृद्धि एनीमिया, तीव्र श्वसन संक्रमण और एलबीडब्ल्यू का प्रसार 10 प्रतिशत, 11 प्रतिशत और 5 प्रतिशत बढ़ जाता है।

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