श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद: हिंदू पक्ष में रार...एक ने कहा-रुक्मिणी के श्याम, दूसरा बोला- राधारानी ही हैं पहचान
श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़े सिविल वाद में राधारानी को पक्षकार बनाने पर हाईकोर्ट में घंटों बहस चली। इस दौरान पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए एक पक्षकार ने कहा कि श्याम रुक्मिणी के हैं तो दूसरे पक्ष ने कहा कि राधारानी ही उनकी पहचान हैं।

मथुरा (आरएनआई) इलाहाबाद हाईकोर्ट में मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद के लंबित सिविल वाद में राधारानी को पक्षकार बनाने को लेकर हिंदू पक्षकारों में रार मच गई है। पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए एक पक्षकार ने कहा कि श्याम रुक्मिणी के हैं तो दूसरे पक्ष ने कहा कि राधारानी ही उनकी पहचान हैं।
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अदालत में मंगलवार को एक घंटे से ज्यादा बहस चली। वृंदावन के कौशल किशोर की राधारानी को वाद में बतौर वादी पक्षकार बनाने की याचिका पर वकालत करते हुए अधिवक्ता रीना एन. सिंह ने अदालत में कहा कि राधारानी से श्रीकृष्ण लला की पहचान है। वह दैवीय प्रेम की प्रतीक हैं।
हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथ पद्म, स्कंद, नारद, ब्रह्मांड, ब्रह्मवैवर्त, मत्स्य, शिव पुराण के साथ-साथ देवी भागवतम में श्रीकृष्ण लला संग राधारानी के वैदिक विवाह और आत्मिक प्रेम का जिक्र मिलता है। इनके मुताबिक बचपन में ही श्रीकृष्ण लला का विवाह राधारानी संग ब्रह्मा जी ने कराया था। लिहाजा, राधारानी को सिविल वाद में बतौर वादी पक्षकार बनाया जाना न्यायहित में जरूरी है।
अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह व अनिल सिंह ने दावा किया कि श्रीकृष्ण का विवाह 31 साल की उम्र में रुक्मिणी संग हुआ था। राधारानी न तो जरूरी पक्षकार हैं और न ही उचित हैं। क्योंकि, उनका रिश्ता केवल भक्त और भगवान जैसा था। उनके बीच ऐसा कई रिश्ता नहीं था, जिसके कारण वह सिविल वाद की पक्षकार बनने की विधिक हैसियत रखती हों।
इसके अलावा यह आरोप भी लगाया कि वाद बिंदु तय होने के स्तर पर नए पक्षकार जोड़ना केवल लंबित मुकदमे को मूल मुद्दे से भटकाने व निस्तारण में देरी करने की कोशिश है। उन्होंने अदालत को बताया कि राधारानी के नाम से मथुरा की जिला अदालत में एक सिविल वाद पहले से लंबित है। उसके स्थानांतरण के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है। लिहाजा, पहले से लंबित सिविल वाद में राधारानी को नए पक्षकार के रूप में जोड़ने के बजाय वाद बिंदु तय किए जाने चाहिए। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले में 23 मई की तारीख नियत कर दी।
शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने की मांग वाली श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष व महेंद्र प्रताप सिंह की अर्जी पर दावे प्रतिदावे भी हुए। इसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष वादी महेंद्र प्रताप सिंह एवं श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष वर्चुअल प्लेटफार्म के जरिए जुड़े।
ईदगाह मस्जिद कमेटी की ओर से अधिवक्ता तनवीर अहमद ने आपत्ति करते हुए कहा, हिंदू पक्षकार अपनी अर्जी में खुद ईदगाह को मस्जिद स्वीकार कर रहे हैं। लिहाजा, इसे विवादित ढांचा घोषित करने की मांग पोषणीय नहीं है। वहीं, प्रतिदावे में अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, उन्होंने अपनी अर्जियों में कभी भी इसे मस्जिद स्वीकार नहीं किया। इस विवादित स्थल के लिए विवादित संरचना शब्द का उपयोग करना इसलिए जरूरी है, ताकि अदालत के रिकॉर्ड में निष्पक्षता और तटस्थता बनी रहे। तर्क दिया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद और संभल मामले में भी मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित किया गया था। इस प्रकरण की अगली तारीख भी 23 मई मुकर्रर की गई।
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