महलों में रहने वालो का पेट भराने के लिए पन्नी के बने मचानों पर रह रहा किसान 

Sep 19, 2023 - 10:02
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महलों में रहने वालो का पेट भराने के लिए पन्नी के बने मचानों पर रह रहा किसान 

महलों में रहने वालो का पेट भराने के लिए पन्नी के बने मचानों पर रह रहा किसान 

हरदोई। किसान शब्द सुनते ही लोगों के चेहरे की भाव भंगिमा बदल जाती है। बड़े अजीब ढंग से किसान को लेने वाले लोगों को आज बताने का प्रयास करेंगे कि भारत का किसान कैसे अपने प्राणों की बाजी लगाकर अन्न उपजाकर देश के लोगों का पेट भरता है। सरकारी तन्त्र व राजनीति का शिकार किसान नाना भांति के अनाज , सब्जियां,फल,दूध का उत्पादन कर लोगों का मनोरंजन कराता है। वहीं दूसरी ओर किसान की उपज के आंकड़ों की बाजीगरी करके सरकारें देश विदेश में अपनी पीठ थपथपा कर श्रेय बटोरने में लगी रहती है। जबकि सरकार में बैठे मंत्री, विधायक,सांसद समेत लालफीताशाही को यह भी पता नहीं होता है कि गेंहू की बाली जड़ में लगती है या पौधे के ऊपर लेकिन वातानुकूलित कमरों में बैठकर कृषि क्षेत्र के लिये रणनीति यही लोग तय करते हैं।ऐसे में किसान की बर्वादी न हो तो क्या हो।दूसरी तरफ बिना किसी कार्ययोजना के सरकारों द्वारा तमाम नियम कानून बनाकर किसानों पर थोप दिये जाते हैं जिससे किसान की ऐसी की तैसी हो जाती है। पिछले कई वर्षों से देखा जा रहा है कि जैसे ही किसान की फसल तैयार होती है कृषि उपज के दाम गिर जाते हैं। बेचारा किसान इन हालातों में औंने पौने दामों पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हो जाता है। नतीजतन किसान को मुनाफा मिलना तो दूर की बात उसको उपज का लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता इस कारण किसान दिनों दिन गरीबी की त्रासदी में डूबता चला जा रहा है। सरकारों  द्वारा खाद बीज दवा डीजल जैसी मूलभूत जरूरतों के मूल्य बढ़ा देने से लागत मूल्य में भारी उछाल आया है।दूसरी ओर आवारा जानवरों ने किसानों की नींद उडा रखी है। रात-दिन नून रोटी खाकर बाल बच्चों से दूर एक पन्नी के सहारे भंयकर बारिश, बादलों के बीच बिजली की गड़गड़ाहट के बीच हथेली पर प्राण लिए अंधेरी रातों में सांप बिच्छुओं  से लडता किसान खेत में बने मचान पर जीने को मजबूर हैं। लेकिन बड़े बड़े महलों में रहने वाले ब्यूरोक्रेट व नेताओं को इन किसानों की दीनदशा से कोई लेना देना नहीं है। आवारा जानवरों से मुक्ति दिलाने के लिए उप्र के मुख्यमंत्री निसंदेह एक भागीरथ प्रयास कर रहे हैं लेकिन उनकी सरकारी मशीनरी पूरी तरह से कागजी घोड़े दौड़ाकर लोगों को राहत दे रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि गांव गांव गौशाला होने के बावजूद भी आवारा गोवंश किसानों की फसल चर रहे हैं। और जमीन से जिम्मेदारो की रिपोर्ट यह है कि सभी गोवंश संरक्षित है।ऐसे में यह व्यवस्था किसान की पूरी तरह कमर तोड रही है इसके बावजूद भी किसान अपनी पत्नी का जेवर बेचकर ,बैंक लोन , महाजन का लोन लेकर फसलों में लगाकर इन बिषम परस्थितियों  में भी बिना खायें पाये रात-रात जागकर अन्न उपजाता है लेकिन उसी किसान का उपजाया अन्न खाकर लोग किसान के पसीने की बदबू से बेहोश होने लगते हैं वहीं किसान बेचारा फटे चीथड़ों में अपना बदन ढके बरसात  की अंधेरी रातो में हथेली पर प्राण रखें सांडो की पीछे दौडने को मजबूर हैं

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Laxmi Kant Pathak Senior Journalist | State Secretary, U.P. Working Journalists Union (Regd.)
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