'ईडी के 98 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ', टीएमसी नेता साकेत गोखले ने लगाया बड़ा आरोप

टीएमसी नेता साकेत गोखले ने ईडी प्रमुख के उस बयान पर निशाना साधा है, जिसमें ईडी प्रमुख ने कहा कि 2014 के बाद ईडी द्वारा दर्ज मामलों में तेजी आई है। इस पर टीएमसी नेता मोदी सरकार को घेरा है। 

May 3, 2025 - 13:30
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'ईडी के 98 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ', टीएमसी नेता साकेत गोखले ने लगाया बड़ा आरोप

नई दिल्ली (आरएनआई) टीएमसी नेता साकेत गोखले ने आरोप लगाया है कि ईडी के 98 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ दर्ज हुए हैं। टीएमसी नेता ने कहा कि बचे हुए दो प्रतिशत लोग वो हैं, जो भाजपा में शामिल हो गए। गोखले ने ईडी निदेशक राहुल नवीन के गुरुवार को दिए बयान का हवाला दिया, जिसमें राहुल नवीन ने कहा कि 2014 से पहले धन शोधन विरोधी कानून काफी हद तक अप्रभावी था, लेकिन 2014 के बाद ईडी द्वारा दर्ज मामलों में उल्लेखनीय तेजी आई है। 

इस पर निशाना साधते हुए टीएमसी नेता ने दावा किया कि 2014 के बाद ईडी द्वारा दर्ज मामलों में उछाल मोदी सरकार के इशारे पर हुआ, जो उसी साल सत्ता में आए थे। एक्स पर साझा एक पोस्ट में गोखले ने कहा, 'कल, केंद्रीय एजेंसी ईडी के प्रमुख ने स्वीकार किया कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दर्ज मामलों में उछाल आया है।' उन्होंने कहा, 'पिछले 11 वर्षों में ईडी द्वारा कुल 5,297 मामले दर्ज किए गए। कितने मामलों में सुनवाई के लिए अदालत में ले जाया गया? केवल 47।' 

टीएमसी के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने कहा कि ईडी मामलों में दोषसिद्धि दर केवल 0.7 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, 'इसका मतलब है कि दर्ज किए गए हर 1000 मामलों में से केवल सात मामलों में ही आरोपी दोषी पाए गए। हर 1000 मामलों में से 993 मामले ईडी द्वारा केवल इसलिए दर्ज किए जाते हैं ताकि किसी व्यक्ति को जेल में रखा जा सके, क्योंकि कठोर पीएमएलए कानून के तहत जमानत मिलना लगभग असंभव है।' गोखले ने केंद्र पर जांच प्रक्रिया को सजा के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, 'इसका उद्देश्य प्रक्रिया को सजा में बदलना है, ताकि निर्दोष आरोपियों को ब्लैकमेल किया जा सके और उन्हें तोड़कर भाजपा के साथ आने के लिए मजबूर किया जा सके।' 

उल्लेखनीय है कि ईडी दिवस के अवसर पर यहां आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए एजेंसी प्रमुख राहुल नवीन ने कहा कि पीएमएलए कानून 2003 में अधिनियमित किया गया था और 1 जुलाई, 2005 को यह लागू हुआ था, लेकिन शुरुआती वर्षों में यह काफी हद तक अप्रभावी था और इसके तहत प्रति वर्ष 200 से भी कम मामले दर्ज होते थे, जिनमें से अधिकतर मादक पदार्थों से संबंधित अपराधों तक ही सीमित थे। हालांकि, 2014 के बाद प्रवर्तन निदेशालय की गतिविधियों में उल्लेखनीय तेजी आई है। 2014 से 2024 तक, 5,113 नई पीएमएलए मामलों से जुड़ी जांच शुरू की गईं, जो औसतन प्रति वर्ष 500 से अधिक मामले हैं।' 

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