दूरदर्शी विकेंद्रीकरण की नींव: जब दिग्विजय सिंह ने 'खूबसूरती' के ताने को किसान सशक्तिकरण के संकल्प में बदल दिया

May 24, 2025 - 22:28
May 24, 2025 - 22:34
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दूरदर्शी विकेंद्रीकरण की नींव: जब दिग्विजय सिंह ने 'खूबसूरती' के ताने को किसान सशक्तिकरण के संकल्प में बदल दिया

मध्यप्रदेश (आरएनआई) ये शब्द मध्य प्रदेश विधानसभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष स्व. श्री सुंदरलाल पटवा जी ने तत्कालीन कृषि राज्यमंत्री आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजय सिंह जी की ओर इंगित करते हुए कहे थे, तब आदरणीय राजा साहब ने कहा था माननीय पटवा जी ने मुझे खूबसूरत कहा, उसके लिए धन्यवाद।

बात है वर्ष 1981 की, जब मध्य प्रदेश विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. श्री अर्जुन सिंह जी की सरकार में आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजय सिंह जी कृषि राज्य मंत्री थे।

28 मार्च 1981, मध्य प्रदेश विधानसभा में मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम (संशोधन विधेयक 1981) का प्रस्ताव रखा, जिसमें आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजय सिंह जी ने सत्ता व अधिकारों के विकेंद्रीकरण की नीति की नींव रखीं, जो आगे चलकर पंचायतीराज अधिनियम के रूप में फलीभूत हुई।

आदरणीय राजा साहब ने विधानसभा में मध्यप्रदेश राज्य भूमि विकास निगम (संशोधन विधेयक 1981) में दो संशोधन प्रस्तावित किए।
पहला: अभी तक निगम का अध्यक्ष विभाग का मंत्री हुआ करता था, लेकिन अब राज्य शासन किसी अन्य व्यक्ति को मनोनीत करे, उसको भूमि विकास निगम का अध्यक्ष बनाया जाए।

दूसरा: निगम का संचालक मण्डल पूरी तरह से शासकीय था, किसानों का कोई प्रतिनिधित्व संचालक मंडल में नहीं था, किसानों की आवाज को भूमि विकास निगम उठानें के लिये किसानों के प्रतिनिधियों का होना आवश्यक हैं इसलिए अब किसान संचालक मंडल के सदस्य होंगे।

यानि सत्ता शासन सरकारी अधिकारी, कर्मचारी से लेकर निगम का प्रतिनिधित्व व संचालन किसानों के हाथ में सौंपा जाएगा।

सदन में भाजपा की ओर से खाचरोद विधायक श्री पुरूषोतम राव विपट जी ने पक्ष रखा और तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजय सिंह जी की प्रशंसा करते हुए कहा कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की दिशा में माननीय मंत्री जी ने इस संशोधन विधेयक कों प्रस्तुत कर एक अच्छी परम्परा डालने की कोशिश की हैं कि अब उस विभाग का मंत्री इसका अध्यक्ष नहीं रहेगा और जनप्रतिनिधियों को ही उसका अध्यक्ष बनाया जायेगा, यह विचार अच्छा है, भावना अच्छी है।

इस पर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष श्री सुंदरलाल पटवा जी ने अपने वक्तव्य में इस संशोधन विधेयक की मंशा पर राजनीतिक प्रश्नचिन्ह लगाते हुए, अपनी ही पार्टी के विधायक श्री पुरुषोत्तम राव विपट जी से कहा कि वे अपने ख्यालात में संशोधन कर लें।
भाजपा विधायक श्री पुरूषोतमराव विपट जी ने पटवा जी से कहा कि मन्त्री जी दिखते सीधे-साधे हैं इसलिए मैंने कह दिया था। 

तत्कालीन खाद्य मन्त्री श्री बालकवि बैरागी जी ने कहा कि मन्त्रीजी से ज्यादा सीधे-साधे सुन्दरलाल पटवाजी दिखते हैं, लेकिन वे ऐसे है क्या ?

श्री सुंदर लाल पटवा जी ने कहा कि सामने का चेहरा (श्री दिग्विजय सिंह की और इंगित करते हुए) खूबसूरत और सीधा-सीधा दिखता है, वास्तव में अन्दर से मामला कुछ और है।

इस पर आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजय सिंह जी कहा कि माननीय पटवाजी ने बहुत ही जोश खरोश का भाषण दिया, मुझे खूबसूरत कहां उसके लिये धन्यवाद।
सभापति जी, मैं पटवाजी को आश्वस्त कराना चाहता हूं कि जिस भावना के साथ इस संशोधन विधेयक को रखा गया हैं उस भावना में तिलमात्र भी किसी प्रकार का भेद नहीं है। एक अच्छी भावना के साथ कि इस भूमि विकास निगम का कार्य सुचारू रूप से चल सके, इस निगम के अन्दर ऐसे व्यक्तियों को भी संचालक मंडल में रखा जा सके जो स्वयं एक किसान हों, जिन्होंने अपनी भूमि पर भूमि विकास निगम का कार्य करवाया हो, उसकी अच्छाइयां समझते है, उसकी राय को दृष्टिगत रखते हुए एक क्रिटिक्ल एसेसमेंट संचालक मंडल के अन्दर दे सकें।

श्री पटवा जी ने कहा कि आपको यह गलत फहमी क्यों है कि हर खूबसूरत आदमी सक्षम होता है।

तब आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजय सिंह जी ने कहा कि मुझे आपको देखकर गलतफहमी नहीं होती हैं, इसमें अक्षमता की बात नहीं है, हम चाहते है कि विकेन्द्रीकरण हो, ज्यादा से ज्यादा ऐसे व्यक्ति जो कि स्वयं निगम के भागी हो, उन लोगों को संचालक मंडल में और अध्यक्ष रहने का मौका मिल सके, यह संशोधन अक्षमता का प्रतीक नहीं, दूरदर्शिता का प्रतीक है, इस संशोधन से किसानों का प्रतिनिधित्व व भागीदारी बढ़ेगी।

सत्ता का विकेंद्रीकरण हमेशा ही दूरदर्शिता का प्रतीक रहा है, मुख्यमंत्री रहते अपने एक वक्तव्य में आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजय सिंह जी ने कहा था कि "मैं गांधीवादी ग्राम स्वराज के सिद्धांत में आस्थावान हूं, ग्राम लोकतंत्र ही स्थापित होना चाहिए, इसमें लोगों की अधिक भागीदारी होनी चाहिए और नौकरशाही की भूमिका कम होनी चाहिए, नौकरशाही को एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए—लोगों के प्रयासों को सहयोग और दिशा देने के लिए, न कि स्वयं कार्य करने के लिए।"

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